हम सभी को ये ज्ञात हैं कि प्रदूषण की समस्या आज एक भयावय रूप धारण कर चुकी है। मनुष्य ने प्रकृति के साथ बहुत अधिक हस्तक्षेप किया है और पृथ्वी के पर्यावरण को जिसमें हवा, पानी और मिट्टी शामिल है, कई तरीकों से प्रदूषित किया है। प्रदूषित पर्यावरण सभी प्रकार के जीवन को प्रदूषित करता है ये न तो केवल मानव बल्कि पशुओं और वनस्पतिओं को भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता हैं।
धीरे-धीरे हम यह भी महसूस कर रहे हैं कि प्रकृति का यह अनमोल उपहार नष्ट हो रहा है और हम जिस प्रदूषित हवा में सांस लेते हैं और हम जो प्रदूषित पानी पीते हैं, उससे मानव जीवन की आयु घटती जा रही है। हवा में प्रदूषकों की वृद्धि ही ग्लोबल वार्मिंग का एक मूल कारण है, जिससे पृथ्वी की सतह के तापमान और समुद्र के स्तर में लगातार अनावश्यक वृद्धि हो रही है|
वायु प्रदूषण ज्यादातर कारखानों, मिलों, कार्यशालाओं, वाहनों की चिमनियों से निकलने वाले धुएँ और पटाखे जलाने के कारण होता है। वायु प्रदूषण से फेफड़े के रोग, अस्थमा, आंखों का फ्लू, सिरदर्द जैसी अनेकों बीमारियाँ हो सकती है।
जल जीवन का मूल आधार है लेकिन मनुष्य को अधिक से अधिक धन प्राप्त करने का लालच इसे प्रदूषित करता जा रहा है। उद्योगों के मालिक अपशिष्ट पदार्थों को पृथ्वी की सतह पर या नदियों में फेंक देते हैं। लोग इस प्रदूषित पानी का उपयोग अपनी दिनचर्या में करते हैं और कई बीमारियों को आमंत्रित करते हैं। जल प्रदूषण के परिणामस्वरूप ही दिल्ली की कई कालोनियों में हैजा का प्रकोप हुआ था। धार्मिक प्रथाओं के कारण भी दुनिया भर में जल प्रदूषण होता है।
ध्वनि प्रदूषण जीवन के लिए अत्यंत खतरनाक है। ऐसा प्रमाणित है कि 80 डेसिबल से अधिक का शोर बहरापन और अन्य बीमारियों का कारण बनता है। बड़े शहरों में वाहनों की गर्जना असहनीय है। उनके इंजन और हॉर्न जो शोर पैदा करते हैं वो लोगों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। जानवरों में मनुष्यों की तुलना में सुनने की शक्ति कुछ ज्यादा होती है इसलिए शादी और त्योहारों में पटाखे फोड़ने से उन पर भयानक प्रभाव पड़ता है।
प्रदूषण के प्रभाव को कम करने के लिए, लोगों को सार्वजनिक परिवहन या कारपूल का उपयोग अधिक करना चाहिए जो वाहनों द्वारा होने वाले प्रदूषण में कमी आएगी। उद्योगों का मलबा धरती की सतह पर या नदियों में नहीं डाला जाना चाहिए। इसे उपयुक्त रसायनों के उपयोग से नष्ट कर दिया जाना चाहिए। वनों की कटाई नहीं होनी चाहिए। लोगों को घरेलू कचरे को सड़कों पर नहीं फेंकना चाहिए। लोगों को अधिक से अधिक पेड़ लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
प्लास्टिक प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए सरकार को रीसाइक्लिंग तकनीक को बढ़ावा देना चाहिए। त्योहारों और शादियों में पटाखों से बहुत अधिक वायु और ध्वनि प्रदूषण होता है इसलिए हमें इनका प्रयोग करने से बचना चाहिए। पर्यावरण में बढ़ते प्रदूषण का एक मुख्य कारण जनसंख्या वृद्धि भी है जिसको नियंत्रित करने के लिए सरकार को कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है। देश के लोगों को भी सरकार के साथ मिलकर प्रदूषण को नियंत्रित करना चाहिए। इन समस्या को नियंत्रित करना न केवल सरकार का कर्तव्य है, बल्कि जनता की भी उतनी ही जिम्मेदारी है।
धीरे-धीरे हम यह भी महसूस कर रहे हैं कि प्रकृति का यह अनमोल उपहार नष्ट हो रहा है और हम जिस प्रदूषित हवा में सांस लेते हैं और हम जो प्रदूषित पानी पीते हैं, उससे मानव जीवन की आयु घटती जा रही है। हवा में प्रदूषकों की वृद्धि ही ग्लोबल वार्मिंग का एक मूल कारण है, जिससे पृथ्वी की सतह के तापमान और समुद्र के स्तर में लगातार अनावश्यक वृद्धि हो रही है|
वायु प्रदूषण ज्यादातर कारखानों, मिलों, कार्यशालाओं, वाहनों की चिमनियों से निकलने वाले धुएँ और पटाखे जलाने के कारण होता है। वायु प्रदूषण से फेफड़े के रोग, अस्थमा, आंखों का फ्लू, सिरदर्द जैसी अनेकों बीमारियाँ हो सकती है।
जल जीवन का मूल आधार है लेकिन मनुष्य को अधिक से अधिक धन प्राप्त करने का लालच इसे प्रदूषित करता जा रहा है। उद्योगों के मालिक अपशिष्ट पदार्थों को पृथ्वी की सतह पर या नदियों में फेंक देते हैं। लोग इस प्रदूषित पानी का उपयोग अपनी दिनचर्या में करते हैं और कई बीमारियों को आमंत्रित करते हैं। जल प्रदूषण के परिणामस्वरूप ही दिल्ली की कई कालोनियों में हैजा का प्रकोप हुआ था। धार्मिक प्रथाओं के कारण भी दुनिया भर में जल प्रदूषण होता है।
ध्वनि प्रदूषण जीवन के लिए अत्यंत खतरनाक है। ऐसा प्रमाणित है कि 80 डेसिबल से अधिक का शोर बहरापन और अन्य बीमारियों का कारण बनता है। बड़े शहरों में वाहनों की गर्जना असहनीय है। उनके इंजन और हॉर्न जो शोर पैदा करते हैं वो लोगों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। जानवरों में मनुष्यों की तुलना में सुनने की शक्ति कुछ ज्यादा होती है इसलिए शादी और त्योहारों में पटाखे फोड़ने से उन पर भयानक प्रभाव पड़ता है।
प्रदूषण के प्रभाव को कम करने के लिए, लोगों को सार्वजनिक परिवहन या कारपूल का उपयोग अधिक करना चाहिए जो वाहनों द्वारा होने वाले प्रदूषण में कमी आएगी। उद्योगों का मलबा धरती की सतह पर या नदियों में नहीं डाला जाना चाहिए। इसे उपयुक्त रसायनों के उपयोग से नष्ट कर दिया जाना चाहिए। वनों की कटाई नहीं होनी चाहिए। लोगों को घरेलू कचरे को सड़कों पर नहीं फेंकना चाहिए। लोगों को अधिक से अधिक पेड़ लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
प्लास्टिक प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए सरकार को रीसाइक्लिंग तकनीक को बढ़ावा देना चाहिए। त्योहारों और शादियों में पटाखों से बहुत अधिक वायु और ध्वनि प्रदूषण होता है इसलिए हमें इनका प्रयोग करने से बचना चाहिए। पर्यावरण में बढ़ते प्रदूषण का एक मुख्य कारण जनसंख्या वृद्धि भी है जिसको नियंत्रित करने के लिए सरकार को कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है। देश के लोगों को भी सरकार के साथ मिलकर प्रदूषण को नियंत्रित करना चाहिए। इन समस्या को नियंत्रित करना न केवल सरकार का कर्तव्य है, बल्कि जनता की भी उतनी ही जिम्मेदारी है।
Recommended: Essay Writing
Post A Comment:
0 comments: